Thursday, June 27, 2013

इतिहास हमारे बारे में फैसला करेगा: मर्लन ब्रांडो का एक बयान

भारतीय फिल्म उद्योग के रीढ़-विहीन जुगाड़ुओं की भीड़ के बीच इस बयान को याद किए जाने की जरूरत है. यह बयान मशहूर अमेरिकी अभिनेता मर्लन ब्रांडो ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए मिले ऑस्कर अवार्ड को ठुकराते हुए दिया था, जिसे उनकी तरफ से अपाचे आदिवासी समुदाय से आनेवाली अभिनेत्री और नेशनल नेटिव अमेरिकन एफरमेटिव इमेज कमिटी की अध्यक्ष सशीन लिटिलफेदर ने पेश किया था. हालांकि ऑस्कर समारोह में उन्हें पूरा बयान पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई और उन्हें मिनट भर में अपनी बात खत्म कर लेने को कहा गया (इस समय सीमा को पार करने पर मंच से हटा दिए जाने की धमकी दी गई थी), जिसकी वजह से लिटिलफेदर ने यह बयान समारोह से बाहर प्रेस के सामने पेश किया था. ब्रांडो को यह अवार्ड द गॉडफादर में उनके शानदार अभिनय के लिए दिया गया था. उन्होंने अवार्ड को ठुकराने का साहस दिखाते हुए उन्हीं दिनों अमेरिका के साउथ डकोटा के वुंडेड नी में अमेरिकी फौज द्वारा संघर्षरत अमेरिकी इंडियनों की हत्याओं और भारी दमन की तरफ दुनिया का ध्यान खींचा था. इस संघर्ष में मर्लन ब्रांडो, एंजेला डेविस, जेन फॉन्डा और दर्जनों बुद्धिजीवी, कलाकार, कार्यकर्ताओं ने संघर्षरत आदिवासियों का साथ दिया था. ब्रांडो ने सिर्फ इसी घटना नहीं, बल्कि आदिवासियों और ब्लैक लोगों के निरंतर शोषण का हवाला भी दिया है. यह बयान आज के भारत में मौजूं है जब भारतीय राज्य यहां के आदिवासियों, दलितों और मुस्लिमों के खिलाफ युद्धरत है. आतंक के खिलाफ युद्ध और ऑपरेशन ग्रीन हंट जैसे फौजी, हिंसक अभियानों के तहत भारतीय राज्य द्वारा जनता के खिलाफ हमले जारी हैं. यहां भी राजसत्ता आदिवासियों को सबसे पहले हथियार रख देने को कहती है और उसके बाद जनसंहारों के सिलसिले शुरू करती है. यह पोस्ट इस उम्मीद में कि अगर आप अपने भाइयों के मुहाफिज नहीं बने तो उनके जल्लाद भी नहीं बनेंगे. अनुवाद: रेयाज उल हक. 
बयान यहां पढ़ें

Wednesday, June 5, 2013

विश्वसुन्दरी प्रतियोगिता में बिकनी नहीं पहनेंगी प्रतिभागी

विश्वसुन्दरी प्रतियोगिता के आयोजकों के हवाले से प्रकाशित एक खबर के मुतीबिक विश्वसुन्दरी प्रतियोगिता में प्रतिभागी बिकनी नहीं पहनेंगी. मैं आश्चर्यचकित हूं और चिन्तित भी कि अभी तक इन बेचारियों को कम से कम इतनी तो गनीमत थी कि बदन पे दो इन्च ही सही कपड़ा होने का अहसास तो होता था। अब ये आयोजक ये दो इन्च कपड़ा भी देने की हैसियत गवां चुके हैं। चलो एक तरह से अच्छा ही है अब इन सुन्दरियों की सुन्दरता एक दम साफ दिखेगी और भद्रजन ज्यादा भद्र हो सकेंगे। तथास्तु।

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी

किसने लिखी, कहां से चली कुछ नहीं पता बस इतना पता है कि मैंने नहीं लिखी, ईमेल में मिली अच्छी लगी यहां पब्लिश कर दिया।

जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...!!

जब मैं छोटा था, शायद शामें बहुत
लम्बी हुआ करती थीं.. मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
अब शायद वक्त सिमट रहा है..!!

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना...
अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं "Hi" हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल पर बस SMS जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..!!

जब मैं छोटा था,तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप. अब internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है...!!

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो उस कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा था ...
"मंजिल तो यही थी,बस जिंदगी गुज़र
गयी मेरी यहाँ आते आते"

तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो, मेरे दोस्त,
और इस ज़िंदगी को जियो खूब जियो मेरे दोस्त...!!