भारतीय फिल्म उद्योग के रीढ़-विहीन जुगाड़ुओं की भीड़ के बीच इस बयान को याद किए जाने की जरूरत है. यह बयान मशहूर अमेरिकी अभिनेता मर्लन ब्रांडो ने
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए मिले ऑस्कर अवार्ड को ठुकराते हुए दिया था,
जिसे उनकी तरफ से अपाचे आदिवासी समुदाय से आनेवाली अभिनेत्री और नेशनल नेटिव अमेरिकन एफरमेटिव इमेज कमिटी की अध्यक्ष सशीन लिटिलफेदर ने
पेश किया था. हालांकि ऑस्कर समारोह में उन्हें पूरा बयान पढ़ने की इजाजत
नहीं दी गई और उन्हें मिनट भर में अपनी बात खत्म कर लेने को कहा गया (इस
समय सीमा को पार करने पर मंच से हटा दिए जाने की धमकी दी गई थी), जिसकी वजह
से लिटिलफेदर ने यह बयान समारोह से बाहर प्रेस के सामने पेश किया था.
ब्रांडो को यह अवार्ड द गॉडफादर में उनके शानदार अभिनय के लिए दिया गया था. उन्होंने अवार्ड को ठुकराने का साहस दिखाते हुए उन्हीं दिनों अमेरिका के साउथ डकोटा के वुंडेड नी में
अमेरिकी फौज द्वारा संघर्षरत अमेरिकी इंडियनों की हत्याओं और भारी दमन की
तरफ दुनिया का ध्यान खींचा था. इस संघर्ष में मर्लन ब्रांडो, एंजेला डेविस,
जेन फॉन्डा और दर्जनों बुद्धिजीवी, कलाकार, कार्यकर्ताओं ने संघर्षरत
आदिवासियों का साथ दिया था. ब्रांडो ने सिर्फ इसी घटना नहीं, बल्कि
आदिवासियों और ब्लैक लोगों के निरंतर शोषण का हवाला भी दिया है. यह बयान आज
के भारत में मौजूं है जब भारतीय राज्य यहां के आदिवासियों, दलितों और
मुस्लिमों के खिलाफ युद्धरत है. आतंक के खिलाफ युद्ध और ऑपरेशन ग्रीन हंट
जैसे फौजी, हिंसक अभियानों के तहत भारतीय राज्य द्वारा जनता के खिलाफ हमले
जारी हैं. यहां भी राजसत्ता आदिवासियों को सबसे पहले हथियार रख देने को
कहती है और उसके बाद जनसंहारों के सिलसिले शुरू करती है. यह पोस्ट इस
उम्मीद में कि अगर आप अपने भाइयों के मुहाफिज नहीं बने तो उनके जल्लाद भी
नहीं बनेंगे. अनुवाद: रेयाज उल हक.
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बयान यहां पढ़ें।